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एसपी ”मूर्ख-मूर्खाओं” को ही रखते थे क्योंकि वे सवाल नहीं पूछते!

 एसपी ”मूर्ख-मूर्खाओं” को ही रखते थे क्योंकि वे सवाल नहीं पूछते! पुण्यतिथि पर एक स्मरण… June 29, 2013 - by जितेन्द्र कुमार   भारत में टीवी पत्रकारिता के गॉडफादर माने जाने वाले सुरेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ़ एसपी की आज पुण्यतिथि है. 1997 में उनकी मौत के बाद बीते दो दशक से ज्यादा वक़्त में भले एसपी के शिष्य और शिष्याएं टीवी चैनलों के सर्वेसर्वा बन चुके हैं और मीडिया की दिशा तय कर रहे हैं, लेकिन इसी अवधि में टीवी मीडिया जितना नैतिक और वैचारिक पतन का शिकार हुआ वह भी अद्भुत है. आखिर इसकी वजह क्या है? मूल शीर्षक “टेलीविज़न पत्रकारिता: सन्दर्भ एसपी सिंह” से लिखा गया यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि टीवी पत्रकारिता की सड़ांध बुनियाद में थी, स्‍तंभों में या फिर उस चूने-पेंट में है जिसे आज के संपादक खुलेआम दोषी ठहरा रहे हैं। यह लेख 2013 में इसी दिन जनपथ पर छपा था. इस लेख में अनामित व्‍यक्तियों और पदों को 2007 जनवरी के हिसाब से पढ़ें और समझें। (संपादक) अपनी बात शुरू करने से पहले एक कहानी। बात उन दिनों की है जब दिल्ली में मेट्रो रेल शुरू ही हुई थी। मेरे एक मित्र मेट्रो से घर जा रहे थे। उ...