आधे सफर की अधूरी कहानी
सुरेंद्रप्रताप सिंह की यादें (10वीं पुण्यतिथि) - दीपक चौरसिया दोपहर का वक्त था। जून की तपती दोपहरी में मैं छुट्टी पर अपने गृहनगर सेंधवा में, जो कि मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र की बार्डर पर है, 'नईदुनिया' के पन्ने पलट रहा था। तभी एकाएक फोन की घंटी बजी। फोन मैंने उठाया। फोन एनडीटीवी से था। मेरी दोस्त माया मीरचंदानी लाइन पर थीं। उन्होंने मुझसे कहा 'एसपी' (प्यार से सब उन्हें यही कहा करते थे) बहुत बीमार हैं, अपोलो में भर्ती हैं। मुझे विश्वास नहीं हुआ। फोन पर दूसरी तरफ मुझे फिर आवाज सुनाई दी मेरी होने वाली पत्नी अनुसूइया थी। 'दीपक मैं तुम्हे बताना चाहती थी, लेकिन पता नहीं तुम कैसे रिएक्ट करोगे।' मैं कुछ नहीं बोल पाया, फोन रख दिया।पहली बस और इंदौर की ओर मैं रवाना हो गया, लेकिन 'एसपी बॉस' के साथ बिताया हर एक लम्हा याद आने लगा। 'इंदौर होलकर साइंस कॉलेज थ्रू आउट फर्स्ट क्लास फर्स्ट' अरे कोई अच्छी नौकरी करो, क्यों झोलाछाप हिन्दी पत्रकारिता में आना चाहते हो। इंदौर से पहली बार जब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन का इंटरव्यू देने गया तो बोर्ड में वही थे। मेर...