Posts

Showing posts from March, 2024

एसपी सिंह के बाद की टीवी पत्रकारिता

  - एसपी सिंह के बाद की टीवी पत्रकारिता 16 जून 1997। सुबह का समय। सुरेंद्र प्रताप सिंह अचानक घर पर गिर पड़े। दोपहर होते होते पता चला कि ये साधारण बेहोशी नहीं थी। कोमा में थे एसपी। ब्रेन हेमरेज हो गया था। एसपी अपने जीवन के चौथे दशक में ही थे। 27 जून को अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। दिल्ली के लोदी रोड शवदाह गृह में उनके भतीजे और पत्रकार चंदन प्रताप सिंह ने शव को मुखाग्नि दी। ग्यारह साल  बाद आज पत्रकारिता, खासकर हिंदी टीवी न्यूज पत्रकारिता एक रोचक दौर में है। भारत में टीवी पत्रकारिता में मॉडर्निटी की शुरुआत आप एसपी के  आज तक  से मान सकते हैं। जिन लोगों ने एसपी का काम देखा है, या सुना है, या उनसे जुड़ी किसी चर्चा में शामिल हुए हैं, या उनके बारे में कोई राय रखते हैं, उनकी और बाकी सभी की प्रतिक्रियाएं आमंत्रित हैं। ये एस पी को श्रद्धांजलि देने का समय नहीं है। इसकी जरूरत भी नहीं है। एसपी मठ तोड़ने के हिमायती थे। ये क्या कम आश्चर्य की बात है कि एसपी के लगभग पांच सौ या उससे भी ज्यादा लेख और इंटरव्यू यहां-वहां बिखरे हैं, लेकिन उनका संकलन अब तक नहीं छप ...

मेरी एसपी सिंह से मुलाकात संतोष भारतीय के माध्यम से हुई : कमर वहीद नकवी

Image
  मेरी एसपी सिंह से मुलाकात संतोष भारतीय के माध्यम से हुई : कमर वहीद नकवी Category:  आवाजाही, कानाफूसी... Created on Tuesday, 22 May 2012 13:55 Written by पुष्कर पुष्प :  आजतक चैनल एस.पी.सिंह का ही चमत्कार था  :  शुरुआत में सुरेन्द्र प्रताप सिंह से परिचय 'रविवार' पत्रिका के माध्यम से हुआ. उन दिनों मैं बनारस में था. बनारस के अखबारों में छपे विज्ञापनों से यह पता चला कि हिन्दी की एक नई पत्रिका 'रविवार' नाम से छपने वाली है. उस समय की बड़ी पत्रिका 'दिनमान' थी और प्रायः सभी बुद्धिजीवी और पत्रकार दिनमान को ही पढ़ते थे. रविवार के बारे में जानने के बाद मैंने यह देखने के लिए पहला अंक ख़रीदा कि देखें कौन सी और कैसी पत्रिका है. रविवार के पहले अंक में बतौर संपादक एम.जे.अकबर का नाम था. लेकिन उसके बाद के अंकों में सुरेन्द्र प्रताप सिंह का नाम आया और फिर वह पत्रिका अच्छी लगने लगी. अच्छी लगने का सबसे बड़ा कारण यह था कि उस समय हिन्दी में ऐसी कोई पत्रिका नही थी. जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया कि उस समय की सबसे स्थापित पत्रिका दिनमान थी लेकिन वह बहुत ही अधिक गंभीर और विश्लेषण पर ...

20 साल पुरानी एक शाही शादी

Image
  20 साल पुरानी एक शाही शादी, दूल्‍हा थे एसपी सिंह आनंद स्‍वरूप वर्मा एसपी पर कई संदर्भों में चर्चा चल रही है। एक लाइन यह है कि एसपी ने हिंदी पत्रकारिता की कुछ जकड़नों को तोड़ा और नये मानक गढ़े। एक लाइन यह है कि एसपी भाषाई पत्रकारिता के उस महीन बिंदु पर थे, जहां उनकी काबिलियत और कुछ संयोगों ने उन्‍हें शिखर पर पहुंचाया - लेकिन ये शिखर आदर्श का शिखर नहीं था। एसपी की मौत पर कथाकार उदय प्रकाश ने एक बहुत ही मार्मिक ज़‍िक्र हमें सौंपा है, जिसे हम जल्‍द ही आपसे साझा करेंगे। अभी आनंद स्‍वरूप वर्मा की एक रपट हम प्रकाशित कर रहे हैं, जो उन्‍होंने आज से बीस साल पहले एसपी की शादी पर लिखी थी। इसे उपलब्‍ध कराया है हमारे दोस्‍त  विश्‍वदीपक  ने, जिनका गिरिराज किशोर से लिया गया  एक इं‍टरव्‍यू  आपको याद होगा। खैर, आनंद स्‍वरूप वर्मा की यह रपट नयी पत्रकारिता की नैतिकता के पीछे छुपी ढोंग जैसी किसी चीज़ को खोजने में मददगार हो सकती है। 9 मार्च, 1988  को राजधानी दिल्‍ली के पत्रकारों एवं अतिविशिष्‍ट जनों ने एक संपादक की शादी की अवसर पर आयोजित जिस भोज में हिस्‍सा लिया, वह अविस्‍मरणी...

S.P.Singh : Icon of Hindi media

  S.P.Singh : Icon of Hindi media Tribute  SP : Legacy of Ethics and courage in the media By Vidya Bhushan Rawat Surendra Pratap Singh or SP as he was popularly known was one of the most iconic journalists of Hindi media at the time when it was opening up to new realities of television journalism. At the time when media particularly the vernacular media and its journalists were openly hobnobbing with the Hindutva lobby in the corporate and enjoyed the patronage, he was sharply different and committed to the profession of journalism. Yes, unlike many other veterans in the Hindi world, who crossed the thin line between journalism and politics, SP was clear about his motive and work. He never pretended to be a mass leader, nor was he a preacher. Those were the days of Indian media when many of the editors had the habit of coming to the front page under their by-line yet these temptations did not attract SP. He was happy with his contents and stood with the ethics of journalism. W...