मेरी एसपी सिंह से मुलाकात संतोष भारतीय के माध्यम से हुई : कमर वहीद नकवी
: आजतक चैनल एस.पी.सिंह का ही चमत्कार था : शुरुआत में सुरेन्द्र प्रताप सिंह से परिचय 'रविवार' पत्रिका के माध्यम से हुआ. उन दिनों मैं बनारस में था. बनारस के अखबारों में छपे विज्ञापनों से यह पता चला कि हिन्दी की एक नई पत्रिका 'रविवार' नाम से छपने वाली है. उस समय की बड़ी पत्रिका 'दिनमान' थी और प्रायः सभी बुद्धिजीवी और पत्रकार दिनमान को ही पढ़ते थे. रविवार के बारे में जानने के बाद मैंने यह देखने के लिए पहला अंक ख़रीदा कि देखें कौन सी और कैसी पत्रिका है. रविवार के पहले अंक में बतौर संपादक एम.जे.अकबर का नाम था. लेकिन उसके बाद के अंकों में सुरेन्द्र प्रताप सिंह का नाम आया और फिर वह पत्रिका अच्छी लगने लगी.
अच्छी लगने का सबसे बड़ा कारण यह था कि उस समय हिन्दी में ऐसी कोई पत्रिका नही थी. जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया कि उस समय की सबसे स्थापित पत्रिका दिनमान थी लेकिन वह बहुत ही अधिक गंभीर और विश्लेषण पर आधारित पत्रिका थी. उसके किसी भी लेख को समझने के लिए कम-से-कम तीन बार पढ़ना पड़ता था. नहीं तो यह समझ में ही नही आता था कि आख़िर लिखा क्या है. फिर भी यह एक बहुत ही अच्छी पत्रिका थी और इससे काफी कुछ सिखने को मिला. यह हमलोगों का सौभाग्य था कि जब हम कुछ करने के लिए तैयार हो रहे थे उस समय दिनमान जैसी पत्रिका मौजूद थी.
दूसरा जो बड़ा सौभाग्य था वह रविवार जैसी पत्रिका की मौजूदगी. रविवार के माध्यम से जैसी पत्रकारिता की शुरुआत हुई वह अपने आप में बेमिसाल थी. मेरी राय में आधुनिक पत्रकारिता का बीज कही था तो वह रविवार था. आज जो कुछ भी हिन्दी पत्रकारिता का स्वरुप है वह रविवार की ही देन है. उन दिनों हिन्दी के अखबार अनुवाद के अखबार हुआ करते थे उस समय के बड़े पत्र - पत्रिकाओं में भी साहित्य को छोड़कर बाकी सबकुछ अनुवादित सामग्री ही हुआ करता थी हिन्दी के अखबारों के लिए अलग से रिपोर्टर नही रखे जाते थे और न ही फील्ड रिपोर्टिंग जैसी कोई परंपरा थी. पीआईबी और हिन्दी की समाचार एजेंसियों के भरोसे हिन्दी के अखबार और पत्र-पत्रिकाएं चलते थे. लेकिन रविवार ने नई शुरुआत की और हिन्दी के पत्रकार रिपोर्टिंग के लिए फील्ड में जाने लगे और इस तरह एक नई शुरुआत हुई.
वह दौर ऐसा था जब दंगे बहुत हुआ करते थे. रविवार में उदयन शर्मा और संतोष भारतीय की ऐसी-ऐसी ज़बरदस्त रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसे पढ़कर रोमांचित हुए बिना नही रह सकते. इन रिपोर्ट्स को पढ़कर सहजता से अनुमान लगाया जा सकता था कि रिपोर्टर ने अपनी जान को कितने बड़े खतरे में डालकर इस रिपोर्ट को
नकवी जी
मेरी एस.पी.सिंह से औपचारिक मुलाकात संतोष भारतीय के माध्यम से हुई. संतोष भारतीय ने ही उनसे मेरा परिचय करवाया इसके बाद जब वे नवभारत टाईम्स में संपादक बन कर आए तब मैं नवभारत टाईम्स, लखनऊ में न्यूज़ एडिटर हुआ करता था वहां पर सीधे तौर पर तो उनके साथ काम करने का मौका नही मिला उनके साथ काम करने का मौका तब मिला जब वे आजतक में संपादक बन कर आए. हिन्दी प्रिंट मीडिया में जो परिवर्तन उन्होंने किया था वही कहानी टेलीविजन में दुहरायी गई ऐसा बहुत कम होता है कि एक व्यक्ति जिसने एक बहुत बड़ा काम किसी एक क्षेत्र में कर दिया हो , वही व्यक्ति उतना ही बड़ा काम उतनी ही सफलता से दुबारा दुहराए .
आज अंग्रेज़ी और हिन्दी टेलीविजन न्यूज़ का जो बूम है उसके पीछे आजतक की लोकप्रियता एक बहुत बड़ा कारण है क्योंकि आजतक ख़बरों का एक ऐसा कार्यक्रम बन गया कि जिंदगी उसके आगे - पीछे होने लगी पहले आजतक 9.30 बजे आता था. तब लोग आजतक देखकर 10.00 बजे सो जाते थे बाद में दूरदर्शन ने कहा कि 9.30 बजे प्राईम टाईम स्लाट है और इसमें हमलोग धारावाहिकों का प्रसारण करेंगे. आपलोग 10.00 बजे का टाईम ले लें. इस बात पर हम सब लोग बड़े चिंतित हुए और हमलोगों ने सोंचा कि यह कार्यक्रम अब बैठ जाएगा. यह चल नही पायेगा और इसकी लोकप्रियता ख़त्म हो जाएगी. 10 बजे तक तो सारे लोग सो जाते हैं इस कार्यक्रम को कौन देखेगा. लेकिन यह बड़े आश्चर्य की बात है कि जब 10 बजे कार्यक्रम की शुरुआत हुई तब लोगों ने अपने सोने के समय की आदत को बदल दिया और आजतक की लोकप्रियता बरक़रार रही. यह एक अनोखा परिवर्तन था.
समय के साथ आजतक की लोकप्रियता और बढ़ी और बाद में यह 24 घंटे के न्यूज़ चैनल में तब्दील हो गया. आजतक की इसी लोकप्रियता की वजह से कई और चैनल आए और धीरे - धीरे यह क्रम बढ़ता गया. आजतक ने देश में एक नए तरह के न्यूज़ टेलीविजन की शुरुआत की जिसने देखते - देखते पुरी दुनिया बदल दी. एसपी सिंह का ही यह चमत्कार था.
एसपी सिंह जनमानस के बीच बेहद लोकप्रिय थे. एस पी सिंह ने लोगों के दिलों को प्रभावित किया. उनके निधन के बाद हमलोगों ने आजतक पर इस समाचार को प्रसारित किया और जगह - जगह पर अपने कैमरे भेजे और लोगों को उनके लिए फूट - फूटकर रोते हुए देखा . आज भी जब कई लोगों को हम अपना परिचय देते है तो सामने वाला के जुबां पर एस.पी.सिंह का नाम आ जाता है वैसे उनकी कामयाबी की दो प्रमुख वजह उनकी ईमानदारी और न्यूज़ के लिए न्यूज़ रूम में वातावरण तैयार करने की उनकी अदम्य क्षमता थी. सुबह 10 बजे के न्यूज़ मीटिंग से लेकर ,रिपोर्टर को निर्देश देने और छोटी -से- छोटी खबर पर भी उनकी नज़र रहती थी. किसी ख़बर की सूक्ष्म - से - सूक्ष्म जानकारी भी वे रखते थे.
कई बार हमलोगों से चूक हो जाती थी पर उनकी नज़र हर ख़बर पर रहती थी . पीटीआई मॉनिटर करना मेरा काम था लेकिन कई बार एस.पी.सिंह आकर बताते थे कि पीटीआई पर यह ख़बर आ गई है और आपलोगों को इसे करना चाहिए. ऐसा एक दो बार नही कई बार हुआ . यह इस बात को दर्शाता है कि ख़बरों को लेकर वे कितने सचेत (एलर्ट) रहते थे. दिनभर में वह 18 - 20 अखबार पढ़ लेते थे. उन्हें कई भाषाओँ की जानकारी थी . हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलावा वह बांग्ला , मराठी और गुजराती के अखबार भी पढ़ते थे. यही कारण था कि उनकी जानकारी व्यापक थी और दूर - दराज़ के किसी इलाके की सूक्ष्म -से- सूक्ष्म जानकारी भी वह रखते थे. वे हर चीज़ की गहराई में जाकर उसे समझने की कोशिश करते थे जो उनकी सबसे बड़ी खासियत थी. देखा जाय तो एस.पी.सिंह की हिन्दी पत्रकारिता में जो देन है उसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता।
(फरवरी 2008 में सुरेन्द्र प्रताप सिंह की याद में आयोजित एक संगोष्ठी में आजतक के न्यूज़ डायरेक्टर कमर वहीद नकवी के दिए गए भाषण का संपादित अंश. इसे संपादित-संयोजित पुष्कर पुष्प ने किया है)
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