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शुरुआत में एसपी को टेलीविजन के लायक नहीं बताया जा रहा था, पर ये है उनकी 'असली कहानी'

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  शुरुआत में एसपी को टेलीविजन के लायक नहीं बताया जा रहा था, पर ये है उनकी 'असली कहानी' उन दिनों सारे हिन्दुस्तान में खुशी की लहर ने लोगों के दिलों को भिगोना शुरू कर दिया था... by  समाचार4मीडिया ब्यूरो Published  - Thursday, 27 June, 2024 Last Modified: Thursday, 27 June, 2024 Share राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार ।। हिन्दुस्तान में जो स्थान संगीत में केएल सहगल, मोहम्मद रफी या लता का है, क्रिकेट में सुनील गावस्कर या सचिन तेंदुलकर का है, हॉकी में मेजर ध्यानचंद का है, फिल्म अभिनय में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का है, वही स्थान हिंदी पत्रकारिता में राजेंद्र माथुर और हिंदी टीवी पत्रकारिता में एसपी का है। जब चैनल नहीं थे तो उस दौर में एसपी ने टीवी पत्रकारिता के जो कीर्तिमान या मानक तय किए, वे आज भी मिसाल हैं। इन्हीं महानायक एसपी की पुण्यतिथि सत्ताइस जून को है। मेरा उनके साथ करीब सत्रह साल तक करीबी संपर्क रहा। उन दिनों सारे हिन्दुस्तान में खुशी की लहर ने लोगों के दिलों को भिगोना शुरू कर दिया था। आजादी की आहट सुनाई देने लगी थी। ये तय हो गया था कि दो-चार महीने में अंग्रेज हिन्दुस...

पत्रकारिता: महानायक का विचार पक्ष

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  पत्रकारिता: महानायक का विचार पक्ष इसे हिंदी के बुद्धिजीवियों को पढऩा चाहिए पर आज के युवाओं को इसे सबसे ज्यादा पढऩे की जरूरत है, जिन्हें भविष्य का भारत गढऩा है. सुरेंद्र प्रताप सिंह प्रेम कुमार मणि अपडेटेड 10 फ़रवरी , 2013 पत्रकारिता का महानायक: सुरेंद्र प्रताप सिंह आर. अनुराधा राजकमल प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली-2, कीमत: 550 रु. info@rajkamalprakashan.com एक नई दिशा तो दी ही थी सुरेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदी पत्रकारिता को, नई सोच भी दी थी. लोग उन्हें प्यार से एस.पी. कहते थे. 1970 के बाद हिंदी पत्रकारिता ने एक नया मोड़ लिया था. यह न केवल आकार में व्यापक हो रही थी, बल्कि अपनी प्रवृत्तियों में भी प्रयोगधर्मी बन रही थी. 1970 के पहले तक हिंदी के ज्यादातर संपादक मूलत: साहित्यकार होते थे और पत्रकारिता दोयम दर्जे का काम माना जाता था. एस.पी. की पीढ़ी ने इन मुहावरों को तोड़ा. जद्दोजहद के लिए तैयार हिंदी पत्रकारों की एक ऐसी पीढ़ी आई, जिसने इसे पेशे के रूप में अपनाया और पेशेवर गुणवत्ता भी हासिल की. इस पीढ़ी को तैयार करने में एस.पी. की बड़ी भूमिका है और इसके लिए वे याद किए जाते रहेंगे. लेकिन उ...

योगेंद्र यादव गलत हैं. एसपी सिंह का ‘आजतक’ कभी भी जातिगत विविधता की सटीक तस्वीर नहीं था

  आजतक न्यूज़ रूम में मुख्य रूप से गैर-ब्राह्मण सवर्ण व्यक्ति शामिल थे. और मृणाल पांडे की प्रशंसा चयनात्मक है साथ ही यह कई जटिल प्रश्नों की जवाब ढूंढती है. जितेंद्र कुमार 14 June, 2023 आजतक’ चैनल पर हाल ही में एक बहस के दौरान, एंकर चित्रा त्रिपाठी और राजनीतिक विज्ञानी से समाजिक कार्यकर्ता बने योगेंद्र यादव ने जाति, राजनीति और मीडिया सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा की. अपने विचार-विमर्श के दौरान योगेंद्र यादव ने भारतीय जनता पार्टी और खासकर हिंदी मीडिया में ‘उच्च’ जाति – विशेष रूप से ब्राह्मण – के वर्चस्व के मुद्दे को उठाकर संबोधित किया. वह मीडिया इंडस्ट्री में जातिवादी उदासीनता का जवाब दे रहे थे खासकर चित्रा त्रिपाठी के उस बयान का जिसमें उन्होंने कहा था- “एक समय जब देश में 20 में से 10 मुख्यमंत्री ब्राह्मण थे”. चर्चा को एक साधारण “ब्राह्मण बनाम यादव” के लेबल तक सीमित करने के बजाय इसकी जटिलताओं के बारे में बात करना जरूरी है. 24 मई को दिप्रिंट में प्रकाशित एक लेख में, यादव का उद्देश्य कुछ बिंदुओं को स्पष्ट करना और बहस से उठी गलत धारणाओं को दूर करना था. लेख हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं ...

Yogendra Yadav is wrong. SP Singh’s Aaj Tak was never a perfect picture of caste diversity

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  Aaj Tak newsroom predominantly consisted of non-Brahmin Savarna individuals. And the appreciation of Mrinal Pande is selective, ignores complex questions. Jitendra Kumar 12 June, 2023 10:17 am IST D uring a recent debate on  Aaj Tak , anchor Chitra Tripathi and political scientist-turned-activist Yogendra Yadav discussed various topics, including caste, politics, and media. In his deliberation, Yadav specifically addressed the issue of ‘upper’ caste — particularly Brahmin — domination among voters of the Bharatiya Janata Party and the Hindi media. He was responding to Tripathi’s casteist nostalgia toward the industry — a time when “10 out of 20 chief ministers were Brahmin https://theprint.in/opinion/yogendra-yadav-is-wrong-sp-singhs-aaj-tak-was-never-a-perfect-picture-of-caste-diversity/1623511/

सुरेंद्र प्रताप सिंह: अखब़ार, टेलीविजन और फिल्मी पर्दे तक हाशिए पर पड़े लोगों का पत्रकार

  सांप्रदायिक मुद्दे हों, अंधविश्वास पर चोट करना हो या समाज के हाशिए के तबके पर पड़े लोगों के सवाल हों, एसपी ने इन बारीक और समाज के भीतर जम चुकी समस्याओं को अपनी लेखनी और प्रस्तुति के जरिए दुनिया के सामने रख दिया. कृष्ण मुरारी 27 June, 2020 जिंदगी तो अपनी रफ्तार से चलती रहती है ….’ टेलीविजन के पर्दे पर ये कुछ अंतिम शब्द थे जिसे सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी) ने बोला था. एसपी को  धर्मयुग ,  रविवार ,  नवभारत   टाइम्स  और  आज   तक   में उनकी पत्रकारिता को लेकर याद किया जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने बेलौस और बेखौफ होकर हिंदी में तथ्यपरक और खोजी पत्रकारिता को बढ़ावा दिया. जिंदगी के अपने महज़ 49 बरस के सफर में से एसपी सिंह ने पत्रकारिता को लगभग 25 साल दिए. इतने छोटे सफर में उन्होंने अपनी पत्रकारिता के कलेवर के दम पर जो प्रतिष्ठा पाई वो बिरले ही किसी को मिलती है. उन्होंने जनसरोकारों को पत्रकारिता का केंद्र बनाकर उनकी समस्याओं को नई दिल्ली में बैठी सत्ता तक पहुंचाया. लेकिन ऐसा करने के दौरान उनके सामने कई चुनौतियां भी आईं लेकिन उन्हें करीब से जानने वा...

पत्रकारिता में इस मान्यता को एसपी सिंह ने पूरी तरह बदल दिया था

  संतोष भारतीय / आज स्व.सुरेंद्र प्रताप सिंह जी की पुण्यतिथि है। सुरेंद्र प्रताप सिंह हिंदी पत्रकारिता के ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने पत्रकारिता में एक विभाजन की रेखा खींची थी। सुरेंद्र प्रताप सिंह के संपादक बनने से पहले हिंदी पत्रकारिता में वही संपादक हो सकता था, जो 50 साल से ऊपर की उम्र का हो और खासकर साहित्यकार हो। उसी को माना जाता था कि यह संपादक होने के लायक है। लेकिन, सुरेंद्र प्रताप सिंह ने इस मान्यता को बदल दिया और उन्होंने ये साबित किया कि 20-22 साल या 24 साल की उम्र के लोग ज्यादा अच्छी पत्रकारिता कर सकते हैं। उन्होंने इस भ्रम को भी तोड़ दिया कि साहित्यकार ही पत्रकार हो सकता है। उन्होंने ये साबित कर दिया कि पत्रकारिता अलग है और साहित्य अलग है। हालांकि, इसके ऊपर काफी बहस हुई। श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्साययन अज्ञेय और श्री सुरेंद्र प्रताप सिंह ने पटना के एक होटल में काफी चर्चा की। इस बातचीत में अज्ञेय जी वह तर्क रख रहे थे कि सुरेंद्र प्रताप सिंह जो पत्रकारिता कर रहे हैं, वह गलत कर रहे हैं, जबकि उनके समय के लोगों ने जो पत्रकारिता की, वह सही थी। उस समय रिकॉर्डिंग नही...