पत्रकारिता: महानायक का विचार पक्ष
- Get link
- X
- Other Apps
पत्रकारिता: महानायक का विचार पक्ष
इसे हिंदी के बुद्धिजीवियों को पढऩा चाहिए पर आज के युवाओं को इसे सबसे ज्यादा पढऩे की जरूरत है, जिन्हें भविष्य का भारत गढऩा है.

पत्रकारिता का महानायक:
सुरेंद्र प्रताप सिंह
आर. अनुराधा
राजकमल प्रकाशन,
दरियागंज, नई दिल्ली-2, कीमत: 550 रु.
info@rajkamalprakashan.com
एक नई दिशा तो दी ही थी सुरेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदी पत्रकारिता को, नई सोच भी दी थी. लोग उन्हें प्यार से एस.पी. कहते थे. 1970 के बाद हिंदी पत्रकारिता ने एक नया मोड़ लिया था. यह न केवल आकार में व्यापक हो रही थी, बल्कि अपनी प्रवृत्तियों में भी प्रयोगधर्मी बन रही थी. 1970 के पहले तक हिंदी के ज्यादातर संपादक मूलत: साहित्यकार होते थे और पत्रकारिता दोयम दर्जे का काम माना जाता था. एस.पी. की पीढ़ी ने इन मुहावरों को तोड़ा. जद्दोजहद के लिए तैयार हिंदी पत्रकारों की एक ऐसी पीढ़ी आई, जिसने इसे पेशे के रूप में अपनाया और पेशेवर गुणवत्ता भी हासिल की. इस पीढ़ी को तैयार करने में एस.पी. की बड़ी भूमिका है और इसके लिए वे याद किए जाते रहेंगे. लेकिन उनकी दूसरी विशेषता है हिंदी पत्रकारिता को सोच के स्तर पर खड़ा करना.
हिंदी साहित्य की तरह हिंदी पत्रकारिता में कोई प्रगतिशील धारा नहीं थी. हिंदी पत्रकार शहरी मध्यवर्ग से आते थे, जो पीढ़ी-दो पीढ़ी पहले तक गांवों में रहते थे और उनका अब भी वहां से जुड़ाव था. सामंतवादी पुरोहिती मूल्यबोध और जाति-बिरादरी के सोच-संस्कार से उनके जहन खचित थे. आर्थिक विषमता दूर करने में इनकी भी दिलचस्पी थी और माक्र्सवादी अथवा नेहरूवादी समाजवादी सरोकारों से वे अलग नहीं थे, किंतु 1990 में सामाजिक न्याय के नारे के साथ सामाजिक लोकतंत्र की जब बात उठी तब वे हैरान हो गए. आर्थिक लोकतंत्र और राजनीतिक लोकतंत्र की बात तो वे समझ सकते थे, लेकिन यह सामाजिक लोकतंत्र क्या होता है? क्या गांधी, नेहरू की तरह आंबेडकर और कांशीराम की भी कोई विचारधारा हो सकती है?
ज्वालामुखी में विस्फोट उस वक्त हुआ जब 1990 में वी.पी. सिंह सरकार ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने संबंधी मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना स्वीकार लिया. आरक्षण के विरोध में हिंदी के ज्यादातर पत्रकारों ने एक जिहाद छोड़ दिया. इसका कारण था इनके वर्गीय और वर्णीय संस्कार. वामपक्षी धारा के लेखक-पत्रकार भी विरोध में ही थे. संसद में मुख्य रूप से तीन सांसदों ने इस फैसले का विरोध किया था, जिसमें दो कम्युनिस्ट और एक सामंती परिवार का कांग्रेसी था. आरक्षण के पक्ष में बोलने वाले लोहिया-कर्पूरी की राजनीतिक परंपरा के राजनेता तो थे, लेकिन लेखक-पत्रकार न के बराबर थे.
ऐसे में एस.पी. ने मोर्चा संभाला. दलित-पिछड़े वर्गों की हिस्सेदारी के समर्थन में, मंडल आयोग की सिफारिशों अर्थात् आरक्षण के समर्थन में-इन्होंने कलम चलानी शुरू की. फिर कुछ और लोगों की हिम्मत हुई. इन्होंने आरक्षण विरोधियों के कुतर्कों का तार्किक जवाब दिया. इस तरह एक सोच, एक वातावरण विकसित हुआ. एस.पी. को इसके लिए सदैव याद किया जाएगा.
एस.पी. ने लंबी आयु नहीं पाई. 1997 में वे अचानक ब्रेन-हैमरेज के कारण दिवंगत हो गए. तब वे आजतक टीवी कार्यक्रम के संपादक- उद्घोषक थे. इस रूप में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी. इसके पूर्व नवभारत टाइम्स और रविवार के संपादक के रूप में उन्होंने काफी काम किया और कई अखबारों में वे स्वतंत्र रूप से भी लिखते थे.
इनके महत्वपूर्ण लेखों का वृहद् और विराट संकलन और संपादन आर. अनुराधा ने किया है. साढ़े चार सौ से ज्यादा पन्नों वाली इस किताब में एस.पी. के चुनिंदा लेखों को शामिल किया गया है. बारह अध्यायों वाले इस संकलन में विविध विषयों पर इनके लेख हैं. मुख्य विषय हैं—सामाजिक न्याय, सांप्रदायिकता, राजनीति, कांग्रेस, तीसरा मोर्चा, भाजपा, चुनाव-राजनीति, कश्मीर समस्या, भ्रष्टाचार, अर्थनीति, समाज-संस्कृति और पत्रकारिता.
यह संकलन हिंदी पत्रकारिता के एक विशिष्ट दौर से हमारा परिचय कराता है. ज्यादातर लेखों के विषय इतने सारगर्भित हैं कि वे हमारे सोच और चिंतन को एक दिशा देते हैं. हिंदी समाज, साहित्य, राजनीति और इसकी मानसिकता जैसे विषयों पर एस.पी. के विचार अत्यंत प्रखर और उत्तेजक हैं. सेक्स और यौनिकता यहां तक कि समलैंगिकता पर भी उनके विचार संकलित हैं. उन्होंने गौतम घोष की प्रसिद्ध फिल्म पार सहित कुछ फिल्मों के संवाद भी लिखे थे. इस संकलन में पार के डायलॉग के अंश को शामिल किया गया है.
बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को यह संकलन अवश्य पढऩा चाहिए. इससे उनके सोच को नई दिशा मिलेगी. लेकिन इसे सबसे अधिक पढऩे की जरूरत है आज के नवयुवकों और नवयुवतियों को, जिन्हें भविष्य का भारत गढऩा है. समानता, धर्मनिरपेक्षता और आधुनिकता जैसे अधुनातन मूल्यों के सजग प्रहरी सुरेंद्र प्रताप सिंह का लेखन नया व न्यायपूर्ण समाज गढऩे में सहायक होगा.
https://www.indiatodayhindi.com/magazine/feature/story/20130213-journalism-the-idea-of-mega-party-584932-2013-02-09
June 14, 2014
नई दिल्ली । भारतीय सूचना सेवा की वरिष्ठ अधिकारी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग में संपादक आर. अनुराधा नहीं रहीं। आज वे हमें अलविदा कह गईं। लम्बे समय से कैंसर से जूझ रही थी ।
2005 में अनुराधा ने कैंसर से अपनी पहली लड़ाई पर आत्मकथात्मक पुस्तक लिखा था - "इंद्रधनुष के पीछे-पीछे : एक कैंसर विजेता की डायरी" जो राधाकृष्ण प्रकाशन से 2005 में प्रकाशित हुई थी। उनकी एक और महत्वपूर्ण कृति है- "पत्रकारिता का महानायकः सुरेंद्र प्रताप सिंह संचयन" जो राजकमल से जून 2011 में प्रकाशित हुआ था। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की पत्नी होने के वावजूद अनुराधा मण्डल की अपनी अलग लेखकीय पहचान थी ।
केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाह ने अनुराधा मण्डल के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, भारतीय सूचना सेवा की अधिकारी, सामाजिक मुद्दों पर प्रखर-बेबाक आर.अनुराधा नहीं रहीं। आज दोपहर उनके निधन की खबर से काफी मर्माहत महसूस कर रहा हूँ। 2005 में अनुराधा ने कैंसर से अपनी पहली लड़ाई पर आत्मकथात्मक पुस्तक लिखा था - "इंद्रधनुष के पीछे-पीछे : एक कैंसर विजेता की डायरी" जो राधाकृष्ण प्रकाशन से 2005 में प्रकाशित हुई थी। लेकिन वे आखिरकार कैंसर की बिमारी की वजह से चल बसी। उनकी एक और महत्वपूर्ण कृति है - "पत्रकारिता का महानायकः सुरेंद्र प्रताप सिंह संचयन" जो राजकमल से जून 2011 में प्रकाशित हुआ था। अनुराधा जी की लेखनी के कारण एक अपनी खास पहचान है पर उनको वरिष्ठ पत्रकार और मेरे अनन्यतम छोटे भाई के समान दिलीप मंडल जी की पत्नी होने की वजह से भी जानता हूँ । दिलीप मंडल ने हाल ही में इंडिया टूडे में मैनेजिंग एडिटर के तौर पर अपना काम इसीलिये छोड़ दिया था ताकि अनुराधा की सेवा कर सके और उनके साथ ज्यादा वक्त गुजार सकें। मै इस दुख की घड़ी में अनुराधा और दिलीप के परिवार के साथ खड़ा हूँ। यह मेरे लिये पारिवारिक क्षति की तरह है। उनके तमाम सहयोगियों, शुभचिंतकों से भी मैं अनुराधा जी के असामयिक निधन पर अपना दुख और हार्दिक संवेदना प्रकट करता हूँ ।
एच एल दुसाद ने अनुराधा मण्डल के निधन पर फेसबुक पर लिखा, मंडल साहब ने जब इंडिया टुडे से इस्तीफा दिया तभी से हम इस दुखद घटना का सामना करने की मानसिक प्रस्तुति लेने लगे थे। इसबीच अनुराधा जी से मिलने के लिए मंडल साहब के समक्ष एकाधिक बार अनुरोध किया, पर वह मिलने की स्थिति में नहीं रहीं । बहरहाल, इस दुखद स्थित के लिए लम्बे समय से मेंटल प्रिपरेशन लेने के बावजूद आज जब उनके नहीं रहने की खबर सुना , स्तब्ध रह गया। अनुराधा जी विदुषी ही नहीं, बेहद सौम्य महिला थीं। उनके नहीं रहने पर एक बड़ी शून्यता का अहसास हो रहा है। बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की ओर से उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
अनुराधा मण्डल के निधन पर मीडियामोरचा श्रद्धांजलि अर्पित करता है ।
http://mediamorcha.com
- Get link
- X
- Other Apps

Comments