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जब एसपी की शैली को पीत पत्रकारिता की श्रेणी में लाने की कोशिश की गई

पटना में डाक बंगला चौराहे के एक होटल में प्रसिद्ध साहित्यकार और ‘दिनमान’ के संपादक रहे अज्ञेय जी और ‘रविवार’ के संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह के बीच लंबी संवादनुमा बहस हुई संतोष भारतीय, वरिष्ठ पत्रकार।। पत्रकारिता के इतिहास में 1977 को एक ऐसे वर्ष के रूप में जाना जाएगा, जहां से रास्ता बदलता है। सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय, प्रफुल्लचंद्र ओझा मुक्त, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, विद्यानिवास मिश्र, रघुवीर सहाय, कन्हैयालाल नंदन जैसे बड़े साहित्यकार हिंदी पत्रिकाओं के या दैनिक अखबारों के संपादक हुआ करते थे। कोई नहीं सोच सकता था कि जिसकी उम्र 25 साल के आसपास है और जो साहित्यकार भी नहीं है, वह भी हिंदी की किसी पत्रिका का या दैनिक अखबार का संपादक हो सकता है। पहली बार साहित्यकार और पत्रकार के बीच एक रेखा खिंची और ‘रविवार’ के पहले संपादक एमजे अकबर बने, जिन्होंने कुछ ही महीनों में यह जिम्मेदारी सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी) को दे दी। व्यावहारिक रूप से सुरेंद्र प्रताप सिंह ही ‘रविवार’ के पहले संपादक थे। ‘आनंद बाजार पत्रिका’ ने हिंदी के इतिहास में जब हिंदी पत्रिका निकालने का निश्चय ...

ये 4 घटनाएं आपको एसपी के व्यक्तित्व से कराती है रूबरू

वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा था- क्षमा बड़न को चाहिए... निर्मलेंदु वरिष्ठ पत्रकार वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा था- क्षमा बड़न को चाहिए। संयम ही एसपी का बहुत बड़ा गुण था। दरअसल, उनको इस बात का अहसास था कि बदला लेने की भावना से या किसी को कटु शब्द कहकर अंतत: कुछ ΄प्राप्त नहीं होता, इसलिए वे हमेशा मुझे यही समझाते रहते थे कि मुख से हमे कभी भी ऐसा शब्द नहीं निकालना चाहिए, जिससे दूसरों का दिल दुखे। शायद यही कारण था कि बड़ी-बड़ी गलतियों को भी वे हंसते हुए नजरंदाज कर दिया करते थे- जी हां, माफ कर देना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग था। शायद उसी में उन्हें आत्मसंतोष होता था, लेकिन डांट नहीं मिलने के कारण कुछ ऐसे लोग भी हुआ करते थे रविवार में, जो बहुत ज्यादा दुखी हो जाया करते थे। इस बात को लेकर परेशान हो जाते थे कि एसपी ने इतनी बड़ी गलती पर कुछ कहा क्यों नहीं? ऐसा क्यों करते थे एसपी? एक बार मैंने ΄पूछा भैया आप गलतियों को माफ क्यों कर देते हैं, तो उन्होंने मुझसे कहा, निर्मल, कोई जान-बूझ कर गलती नहीं करता। गलlतियां हो जाती हैं, कभी नासमझी की वजह से, तो कभी असर्तकता के क...

आनेवाली पीढ़ी भी एसपी को थोड़ा-बहुत जानें

सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी) के मौत को बीस साल हो गए...     दर्पण सिंह सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी) के मौत को 21 साल हो गए! आज के बहुत से पत्रकार उनको जानते भी नहीं होंगे। इसमें उनका दोष भी नहीं है। आज मैं हिंदी में लिख रहा हूं, इसके पीछे भी एक कारण है जिसकी चर्चा मैं नीचे करूंगा. आज के retweets और likes वाली generation के लिए ये बुरा नहीं होगा अगर वो एसपी को थोड़ा-बहुत जानें। यूपी के गाजीपुर जिले में एक छोटा गांव है- पातेपुर जहां उनका जन्म हुआ। प्राइमरी एजुकेशन गांव में ही मिली। उनके पिता जगन्नाथ सिंह, मेरे नाना फौजदार सिंह के भाई, कारोबारी थे और बंगाल के गारोलिया कसबे में बस गए थे। जब मैंने 2001 में पत्रकारिता शुरू की तो नानी (पार्वती देवी) उनके किस्से खूब सुनाया करती थी। एसपी भी बाद में गारोलिया पढ़ने चले गए। एमजे अकबर बचपन के दोस्त थे। 1962 में एसपी ने मैट्रिक सेकेण्ड डिवीजन में पास किया, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिंदी में मास्टर्स फर्स्ट डिवीजन में और सुरेंद्रनाथ कॉलेज से लॉ ग्रैजुएट। थोड़े समय के लिए AISF से जुड़े और यूनियन की मैगजीन के संपादक भी रहे। पहल...

एसपी को पूरा जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख

27जून 1997 को हो गया था वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह का निधन  निरंजन परिहार, वरिष्ठ पत्रकार।। शुक्रवार था। काला शुक्रवार। इतना काला कि वह काल बनकर आया और हमारे एसपी को लील गया। 27 जून 1997 को भारतीय मीडिया के इतिहास में सबसे दारुण और दर्दनाक दिन कहा जा सकता है। उस दिन से आज तक पूरे 22 साल हो गए। एसपी सिंह हमारे बीच में नहीं है, ऐसा बहुत लोग मानते हैं, लेकिन अपन नहीं मानते। वे जिंदा हैं, आप में, हम में और उन सब में, जो खबरों को खबरों की तरह नहीं, जिंदगी की तरह जीते हैं। यह हमको एसपी ने सिखाया। वे सिखा ही रहे थे कि...चले गए। एसपी। जी हां, एसपी। गाजीपुर गांव के सुरेंद्र प्रताप सिंह को इतने बड़े संसार में इतने छोटे नाम से ही यह देश जानता है। वह आज ही का दिन था, जब  टेलिविजन पर खबरों का एकदम नया और गजब का संसार रचने वाला एक शख्स हमारे बीच से सदा के लिए चला गया। तब दूरदर्शन ही था, जिसे पूरे देश में समान रूप से सनातन सम्मान के साथ स्वीकार किया जाता था। देश के इस राष्ट्रीय टेलिविजन के मेट्रो चैनल की इज्जत एसपी की वजह से बढ़ी। क्योंकि वे उस पर रोजाना रात दस बजे खबरें ले...