तब एसपी सिंह आरक्षण और वीपी सिंह के पक्ष में लिख और बोल रहे थे
तब एसपी सिंह आरक्षण और वीपी सिंह के पक्ष में लिख और बोल रहे थे
एसपी सिंह को भारतीय टेलीविजन मीडिया का जनक कहा जाता है।
एसपी सिंह जीते जी ही किंवदंती बन गए थे। मात्र 48 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
एसपी सिंह को लोग अलग-अलग कारणों से याद करते हैं।
दो वजहों से उनके प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा रहती है। पहली यह कि एसपी सिंह उन कुछ संपादकों में थे ।जो वीपी सिंह द्वारा पिछड़े तबके को आरक्षण देने के बाद मजबूती से वीपी सिंह के पक्ष में स्टैंड लिए।
जब अखबारों के संपादकीय पन्ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को गाली देते हुए रंगे जा रहे थे ।तब एसपी सिंह आरक्षण और वीपी सिंह के पक्ष में लिख और बोल रहे थे।
दूसरा कारण एसपी सिंह ने संपादक रहते उन समूहों के बच्चों को नौकरी दी ।जो न्यूनरूम के अंदर घुसने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते थे।
एसपी सिंह के संपादकत्व वाला न्यूजरूम जितना विविधरंगी था ।वह न एसपी सिंह से पहले कभी हुआ और न एसपी सिंह के बाद हुआ।
एसपी सिंह नहीं होते। तो अतिपिछड़ा समाज से आने वाले दीपक चौरसिया पत्रकारिता करने के बजाय आज ददन पोहावाला की तरह दिल्ली की किसी गली में "चौरसिया पान भंडार" चला रहे होते।
एसपी सिंह नहीं होते ।तो नॉर्थ-ईस्ट से आने वाले दिबांग दिल्ली के मुनिरका में मोमो और मंचूरियन बेच रहे होते।
दिलीप मंडल यह बात लिख चुके हैं कि एसपी सिंह ने उन्हें ब्रेक नहीं दिया होता ।तो वे झारखंड लौट कर उत्पात मचाते हुए मारे जाते।
निर्मलेंदु साहा टाइपिस्ट का काम करते थे। एसपी सिंह उनको उठाकर पत्रकार बना दिए थे।
वाकई में एसपी सिंह होना आसान बात नहीं है। पत्रकारिता के महानायक को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन...


साभार :- राजीव सिंह जादौन
राजन्य क्रॉनिकल्स टीम
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