एसपी की मौत के बारे में मुद्राराक्षस ने बताया था ये राज

 


एसपी यानी सुरेंद्र प्रताप सिंह को शायद पत्रकारों की नई पीढ़ी नहीं जानती हो लेकिन मुझे गर्व है कि...

समाचार4मीडिया ब्यूरोby 
Published - Sunday, 27 June, 2021
Last Modified:
Sunday, 27 June, 2021
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कुमार पंकज, वरिष्ठ पत्रकार ।।

एसपी यानी सुरेंद्र प्रताप सिंह को शायद पत्रकारों की नई पीढ़ी नहीं जानती हो लेकिन मुझे गर्व है कि मैं एसपी के गृह जनपद गाजीपुर के जिले का हूं। भले ही उनकी शिक्षा पश्चिम बंगाल में हुई हो लेकिन गाजीपुर की धरती से भी उनका जुड़ाव बराबर बना रहा। इसे महज संयोग ही कहेंगे कि जब मेरी रुचि पत्रकारिता के क्षेत्र में हुई तो सबसे पहले मुझे एसपी सिंह के ही बारे में पता चला कि वे गाजीपुर के रहने वाले हैं।

एसपी का जो मूल गांव गाजीपुर जिले के करीमुद्दीनपुर के पास पातेपुर था। उस इलाके में मेरे चचेरे भाई संग्रह अमीन के पद पर कार्यरत थे। जैसे ही मेरी रुचि के बारे में उनको पता चला तो उन्होंने तुरंत कहा कि अरे जानते हो एसपी सिंह को, मैंने कहा, ‘हां नाम सुना है’, तो कहने लगे कि अरे मेरे इलाके में ही उनका गांव है। तो मैंने तपाक से कहा, ‘तब तो गांव आते होंगे उनसे मुझे मिलना है।’ उस समय मैं इंटरमीडिएट की पढ़ाई गाजीपुर से कर रहा था और स्‍थानीय अखबारों में कुछ-कुछ लिखता रहता था। उन्होंने सहर्ष कहा कि हां मैं पता करुंगा कि वे कब आने वाले हैं। मेरी उनके बारे में उत्सुकता और बढ़ गई। गाजीपुर के कई पत्रकारों से जो उनके बारे में जानते थे पूछने लगा। कई लोगों ने बताया कि वे बहुत बड़े पत्रकार हैं। अब गाजीपुर कम आते हैं लेकिन दिल्ली जाना तो जरूर मिलना।

उस समय दैनिक आज से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार जो कि बलिया के मूल निवासी थे उनका नाम याद नहीं है संयोगवश उनसे मिलना हुआ तब उन्होंने कहा कि मैं बहुत अच्छी तरह से उनको जानता हूं और मेरा नाम लेकर मिल सकते हो उन्होंने उनका नंबर भी मुझे उपलब्‍ध कराया। बात 1995 की है जब मेरे चचेरे भाई ने बताया कि एसपी सिंह गाजीपुर आने वाले हैं उनके परिवार में कोई शादी है तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सोचा कि अबकी बार तो मुलाकात होगी ही। लेकिन शायद ऐन वक्त पर उनका आने का कार्यक्रम टल गया। फिर भी उनसे मिलने की उम्मीद मैंने बरकरार रखी।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान गांधी भवन से जुड़ने का मौका मिला जहां पत्रकारिता की कार्यशाला में देश के तमाम दिग्गज पत्रकारों प्रभाष जोशी, अच्युतानंदन मिश्र, विभांशु दिव्याल सहित कई लोगों से मिलने का अवसर मिला। गांधी भवन के आयोजकों से भी इस बात की चर्चा हुई कि एसपी सिंह को बुलाया जाए। तब तक एसपी सिंह टीवी की दुनिया के लिए एक ब्रैंड बन गए थे। ‘आजतक’ की चर्चा हर जगह होने लगी थी। भले ही वह आधे घंटे का बुलेटिन था लेकिन हम जैसे युवाओं के लिए वह उत्सुकता वाला कार्यक्रम बन गया था कि उस आधे घंटे में क्या-क्या दिखाते हैं। उस समय टीवी के सेट कम ही देखने को मिलते थे। चूंकि हम लोग छात्र थे तो वैसे भी टीवी उपलब्‍ध नहीं था। फिर भी जब मौका मिलता था तो उनका कार्यक्रम जरूर देखते थे।

बात फरवरी 1998  की है उस समय एसपी इस दुनिया से विदा हो चुके थे। गांधी भवन में पत्रकारिता पर एक और कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार मुद्रा राक्षस जी से मिलने का मौका मिला। उन्होंने कार्यशाला के दौरान एसपी की पत्रकारिता का उल्लेख किया था। इसलिए मेरी दिलचस्पी उनसे मिलने को लेकर और बढ़ गई। कार्यशाला के बाद मैं उनसे मिला और पूछने लगा तब मुद्रा जी से मैंने कहा कि मैं भी गाजीपुर का हूं। दुर्भाग्यवश उनसे नहीं मिल पाया लेकिन मैं उनके बारे में जानना चाहता हूं। कम उम्र में ही उनका देहान्त हो गया लेकिन उन्होंने अपने काम के बल पर पत्रकारिता जगत में अपनी अलग मुकाम बना ली। तब मुद्रा राक्षस ने बताया कि एसपी एक ब्रैंड थे और उस ब्रैंड को भी उनकी मौत के बाद भी भुनाया गया।

 मैंने पूछा वो कैसे तो कहने लगे कि उनकी मौत कई दिन पहले होने के बावजूद यह नहीं बताया गया कि एसपी की मौत हो गई है। मैने पूछा क्यों? तब उनका जवाब था कि जिस कार्यक्रम को वे प्रस्तुत करते थे, उसको जितना विज्ञापन मिला था वो एसपी के नाम पर मिला ‌था अगर यह पता चल जाता कि एसपी की मौत हो गई तो विज्ञापन कंपनिया विज्ञापन रोक देती, क्योंकि उस कार्यक्रम को लोग इसलिए देखते थे क्योंकि उसे एसपी प्रस्तुत करते थे। मुद्रा जी ने मीडिया के बाजारीकरण पर बहुत बातें बताई। जो अक्षरशः सच साबित हो रही हैं। बहरहाल आज एसपी की जगह कोई और नहीं ले सका और न कोई उनकी तरह ब्रैंड बन सका। एसपी को शत-शत नमन।    https://www.samachar4media.com/industry-briefing/an-article-on-sp-singh-written-by-kumar-pankaj-21554.html

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