आइए बॉस को जाने, साथ में एसपी सिंह को नमन
एक बहुत पोपुलर टीवी विज्ञापन है। हरि साडू वाला। एच फार हिटलर..। याद आ गया। क्या बॉस का सही रूप यही है। बॉस, हर कोई त्रस्त रहता है। चाहे वह सरकारी दफ्तर हो या फिर प्राइवेट।
दफ्तर में बॉस एक होते हैं लेकिन हर कर्मचारी अपने से ठीक ऊपर वाले बॉस (सीनियर) से परेशान होता है। अपने सहकर्मी को तमाम तरीके के कमेंट देता रहता है, बॉस को लेकर। यार ऐसा है, वैसा है लेकिन एक बात है .. जानकार आदमी है। (जानकार नहीं होता तो वहां थोड़े ही बैठा होता)
लोगों की कोशिश होती है कि वह बॉस का जन्मदिन जाने और उसे शुभकामनाएं दे। सबसे पहले। इसे कहते हैं चाटुकारिता नीति।
बॉस और कर्मचारी विक्रम और बैताल की तरह से हैं। कर्मचारी हमेशा भागना चाहता है लेकिन ‘विक्रम’ हमेशा कर्मचारी को पकड़ लेता है। पूरी कहानी सुनता है। जवाब देता है और कर्मचारी फिर गोली देकर भाग निकलता है।
ऐसा नहीं है कि ‘विक्रम’ को नहीं पता कि बैताल भाग जाएगा। फिर भी वह उसे भागने के लिए एक-दो मौके दे देता है। आज का विक्रम पहले से कहीं ज्यादा चतुर और चालाक है।
बॉस को भी कर्मचारियों की गतिविधि जानने के लिए एक चाटुकार की जरूरत होती है। चाहे जो भी मिल जाए। समझदार बैताल या नासमझ बैताल। कहानी तो सुनाएगा ही।
लेकिन कई बॉस टीम में काम करने पर विश्वास रखते हैं। जैसे सुरेंद्र प्रताप सिंह, एसपी। आज उनके शिष्य सभी मीडिया संस्थाओं के मुखिया बन बैठे हैं लेकिन कोई अपने जैसा शिष्य नहीं बना पा रहा है। आज एसपी की दसवीं पुण्यतिथि है। उनको मेरा नमन।
मैंने यह लेख उनको याद करते हुए ही लिखा। आज जनसत्ता और अमर उजाला के संपादकीय पृष्ठ पर उनके बारे में विस्तार से लिखा है। अगर संभव हो तो पत्रकार ब्लागर पढ़ लें।
दफ्तर में बॉस एक होते हैं लेकिन हर कर्मचारी अपने से ठीक ऊपर वाले बॉस (सीनियर) से परेशान होता है। अपने सहकर्मी को तमाम तरीके के कमेंट देता रहता है, बॉस को लेकर। यार ऐसा है, वैसा है लेकिन एक बात है .. जानकार आदमी है। (जानकार नहीं होता तो वहां थोड़े ही बैठा होता)
लोगों की कोशिश होती है कि वह बॉस का जन्मदिन जाने और उसे शुभकामनाएं दे। सबसे पहले। इसे कहते हैं चाटुकारिता नीति।
बॉस और कर्मचारी विक्रम और बैताल की तरह से हैं। कर्मचारी हमेशा भागना चाहता है लेकिन ‘विक्रम’ हमेशा कर्मचारी को पकड़ लेता है। पूरी कहानी सुनता है। जवाब देता है और कर्मचारी फिर गोली देकर भाग निकलता है।
ऐसा नहीं है कि ‘विक्रम’ को नहीं पता कि बैताल भाग जाएगा। फिर भी वह उसे भागने के लिए एक-दो मौके दे देता है। आज का विक्रम पहले से कहीं ज्यादा चतुर और चालाक है।
बॉस को भी कर्मचारियों की गतिविधि जानने के लिए एक चाटुकार की जरूरत होती है। चाहे जो भी मिल जाए। समझदार बैताल या नासमझ बैताल। कहानी तो सुनाएगा ही।
लेकिन कई बॉस टीम में काम करने पर विश्वास रखते हैं। जैसे सुरेंद्र प्रताप सिंह, एसपी। आज उनके शिष्य सभी मीडिया संस्थाओं के मुखिया बन बैठे हैं लेकिन कोई अपने जैसा शिष्य नहीं बना पा रहा है। आज एसपी की दसवीं पुण्यतिथि है। उनको मेरा नमन।
मैंने यह लेख उनको याद करते हुए ही लिखा। आज जनसत्ता और अमर उजाला के संपादकीय पृष्ठ पर उनके बारे में विस्तार से लिखा है। अगर संभव हो तो पत्रकार ब्लागर पढ़ लें।
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