Sunday, April 26, 2015

“एसपी” के बहाने मीडिया – कल, आज और कल

27 जून करीब है। ये वही दिन है जब 12 साल पहले सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी सबके प्यारे एसपी ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनके जाने के बाद के इन 12 वर्षों में मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा बहुत कुछ बदला है। लिखने और बोलने की आज़ादी पर कई नई बेड़ियां डली हैं। एसपी को करीब से जानने वाले कहते हैं कि अगर आज वो ज़िंदा होते तो मीडिया का स्वरूप कुछ और होता। वो ये भी कहते हैं कि एसपी ने ज़िंदगी में हमेशा एक मूल मंत्र का पालन किया। वो मंत्र ये था कि सदा कमजोर के पक्ष में खड़े रहो… एक पत्रकार की ताक़त इसी में है।
एसपी को केंद्र में रख कर अगर देखें तो आज मीडिया को हम मोटे तौर पर तीन हिस्सों में बांट सकते हैं। शीर्ष और मध्य में मौजूद पत्रकारों में एक तरफ वो हैं जिन्होंने एसपी को करीब से देखा। उनके साथ काम किया और आज भी उन्हें शिद्दत से याद करते हैं। गाहे-बगाहे उनका जिक्र करते हैं। दूसरी तरफ वो लोग हैं जिन्होंने एसपी की देखा और सुना मगर उनके साथ काम नहीं किया। मध्य और निचली पांत में वो युवा पत्रकार हैं जिन्होंने एसपी के जाने के बाद मीडिया में कदम रखा और आने वाले वक़्त में यही पत्रकार मीडिया का भविष्य भी तय करेंगे। इसलिए क्यों न एसपी के बहाने ही सही एक बार मीडिया के कल, आज और कल पर बहस शुरू की जाए और इस बहस में हर कोई हिस्सा ले। वो भी जिन्होंने एसपी के साथ काम किया और वो भी जिन्हें ये मौका नहीं मिला। ये बहस किसी नतीजे पर पहुंचे, न पहुंचे… इतना तय है कि इससे हम सबकी जुबां और जेहन पर लगीं कई गांठें खुल जाएंगी।

((27 जून को दिल्ली के प्रेस क्लब में दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक एक सभा है। विषय है – एसपी की स्मृति में … जाने कहां गए वो लोग। इस मौके पर एसपी के बहाने उन सभी पत्रकारों को याद किया जाएगा जिन्हें मौत ने बेवक़्त हमसे जुदा कर दिया। अगर आप शनिवार को दिल्ली में हैं और उन साथियों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करना चाहते हैं तो दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे के बीच प्रेस क्लब जरूर पहुंचें।))

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